लेखनी कहानी -28-May-2022 खबर या ऐजेण्डा
कोई जमाना था जब पत्रकारिता एक जुनून हुआ करती थी । लोगों तक "खबर" पहुंचाना बहुत कठिन काम हुआ करता था । अंग्रेजों का राज था आखिर । ऐसे में कल्पना ही की जा सकती है कि "अखबार" निकालना और उसे लोगों तक पहुंचाना कितना दुस्साहसी कार्य था । मगर आजादी के मतवालों ने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए भी सच्ची खबर लोगों तक पहुंचाई । बंकिम चंद्र चटर्जी जैसे बहुत सारे लोग थे जिन्होंने साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से लोगों में देशभक्ति की अलख जगाई । ऐसे महान संपादकों और पत्रकारों में से कितने लोगों का नाम जानते हैं हम ?
फिर देश आजाद हुआ और कांग्रेस की सरकार बन गई । बस, उसके साथ ही ऐजेंडा गाने और उसे जनता पर थोपने की शुरुआत हो गई । पत्रकार शासक दल और प्रधानमंत्री का गुणगान करने लगे । उनकी सही और गलत नीतियों को भी क्रांतिकारी बताने लगे । हिन्दी चीनी भाई भाई के खोखले नारों और "पंचशील" की नीति के चलते देश पर चीन ने आक्रमण कर दिया । इससे बड़ी कूटनीतिक हार कभी नहीं हुई भारत की । भारत ने चीन के विरुद्ध कोई तैयारी नहीं की थी । जवानों के पास ठंड से बचने के लिये कपड़े तक नहीं थे । ठंड से ही मर गए बहुत सारे सैनिक । लोगों ने पैसे इकठ्ठे कर उन्हें ढंग के कपड़े भेजे । मगर एक शासक को महानायक बनाने में समस्त अखबार, संपादक और पत्रकार लग गये । नतीजा यह निकला कि भारत का लाखों किलोमीटर का क्षेत्र चीन ने हड़प कर लिया । बड़ी ही बेशर्मी से नेहरू जी ने संसद में कहा था "बेकार और अनुपजाऊ भूमि जो भारत के किसी काम की नहीं थी , उसे ही तो चीन ने लिया है । इसका हमारे लिए कोई महत्व नहीं है" । मगर इस शर्मनाक बयान की किसी ने निन्दा तक नहीं की थी । तब एक सांसद महोदय ने संसद में कहा था "अगर किसी की खोपड़ी पर एक भी बाल नहीं हो तो क्या उसे दे दिया जाये" ? इस प्रश्न ने नेहरू जी को निरुत्तर कर दिया था ।
जब पत्रकार खबर लिखने के पीछे सरकार से कुछ उम्मीद करने लगे , पद्म पुरस्कारों के लिये चापलूसी करने लगे या राज्य सभा की सीट के लिए तलवे चाटने लगे तो पत्रकारिता का स्तर क्या होगा , यह समझा जा सकता है । मनमोहिनी सरकार में तो पत्रकार यह भी तय करते थे कि सरकार में मंत्री कौन बनेगा ? कब तक रहेगा ? तब यह समझ लेना चाहिए कि अब पत्रकारिता के दिन लद गये और सिर्फ प्रोपोगेंडा के दिन आ गये हैं ।
मजे की बात देखिए कि आज जो लोग "गोदी मीडिया" कहकर तंज कस रहे हैं , ये सब वही लोग हैं जो मनमोहिनी सरकार में मलाई चाट रहे थे । राजमाता से साक्षात्कार करते हुए यह पूछ रहे थे कि आपने साड़ी बांधना कहां से सीखा था ? आप किचन में क्या क्या बना लेती हैं ? मनमोहिनी सरकार ने कितने पत्तलकारों को राज्य सभा में भेजा और कितने पत्तलकारों को पद्म पुरस्कार वितरित किये ? यदि इसका हिसाब लगा लेंगे तो पता चल जायेगा कि असली गोदी मीडिया कौन है ?
टेलीविजन पर अदालत लगाने वाला एक तथाकथित राष्ट्रवादी पत्तलकार यासीन मलिक जैसे आतंकवादियों को "जनता की अदालत" में बुलाकर उसका डेढ घंटे तक महिमामंडन करता है और अपने आपको राष्ट्रवादी और पत्रकार कहता है तब हमें समझ में आता है कि ये लोग भेड़ की खाल ओढकर अपना भेड़ियापना छुपाने में कामयाब रहे । जनता की आंखों में धूल झोंकते रहे और खबरों के बजाय अपना ऐजेंडा चलाते रहे । आज इनके पास हजारों करोड़ रुपए की सम्पत्ति कहां से आई ? क्या ये बतायेंगे ? दुनिया भर को उपदेश देने वाले कोई रबिश कुमार , खाजदीप, बुरका दत्त, खारफा जानम और भी पचासों नाम भरे पड़े हैं , ये बतायेंगे कि उनके पास कितनी सम्पत्ति है और वह कहां से आई ?
आज सबसे अधिक कटघरे में मीडिया और न्यायपालिका ही है जिन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है निरंकुश व्यक्ति या संस्था कैसे कैसे खेल करते हैं ये हम अभी देख ही रहे हैं । आपातकाल को अभी तक लोग भूले नहीं हैं । जो खुद दागदार हैं वही स्वच्छता का दंभ भर रहे हैं
आज ज्यादातर मीडिया संस्थान खबरों के बजाय प्रपोगेंडा चला रहे हैं । रंडी टीवी का नाम तो सुना ही होगा आपने । लोग कहते हैं कि एक वेश्या कम से कम कुछ तो ईमान रखती है पर इस चैनल ने तो उसे भी पीछे छोड़ दिया है । खैर, जनता अब समझदार हो गई है और ऐसे लोगों , पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को पहचान रही है । बहुत सारे क्रांतिकारी पत्तलकार आज "पैदल" हो गए हैं । मगर जिन्हें तलवे चाटने का शौक है वे अपनी आदत कैसे सुधार सकते हैं ? कोई आदमी एक राजनीतिक दल में घुसकर भी अपने आपको पत्रकार कहे और "सत्य" नाम से केवल असत्य ही परोसे तो ऐसे धूर्त और मक्कार लोगों को सलाखों के पीछे होना चाहिए न कि मीडिया में ।
हरिशंकर गोयल "हरि"
28.5.22
shweta soni
25-Jul-2022 08:39 PM
Bahut achhi rachana
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Seema Priyadarshini sahay
29-May-2022 11:20 PM
बहुत बेहतरीन रचना
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Gunjan Kamal
28-May-2022 08:23 PM
बहुत खूब
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